गुरु भजन
तुम्ही से ज्ञान का, दीपक जला है,
तुम्ही से घनघोर, अँधेरा मिटा है,
तुम जो नहीं गुरुजी, कुछ भी नहीं है…
हमे रास्तों की जरुरत नहीं है, हमे तेरे पैरों के निशा मिल गए है।
तुम ही हो शिव और, ब्रह्मा का संगम,
सब कुछ तुम्हारा, सब तुम को अर्पण,
अब तेरा मैं हूँ, मुझ में ही तू है,
हमें रास्तों की, जरुरत नहीं है…
छाए जो दिल पे, गम का अंधेरा,
तन्हाईओंने, जो मन को घेरा,
खिलता सवेरा लेकर, तू रुबरु है,
हमें रास्तों की, जरुरत नहीं है…
कलीओं में तू है, फूलों में तू है,
सागर की एक एक, लहेर में भी तू है,
कहीं भी मैं जाऊँ, बस तू ही तू है,
हमें रास्तों की, जरुरत नहीं है…
जन-जन की सेवा, यही मेरी पूजा,
तुम ही तुम हो, कोई न दुज़ा,
तुम से है सब कुछ रोशन, कण कण में तू है, ।
हमें रास्तों की जरूरत नहीं है…
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